Wednesday, May 15, 2024

मुझे तो अपनों ने ही लूटा है गैरों में कहां दम था
मेरी किश्ती वहीं डूबी जहां पानी कम था

(अब्दुल मोबीन)
शीर्षक की दो पंक्तियां नीतीश कुमार और उनकी सरकार में शामिल सहयोगी दलों पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही हैं। जहरीली शराब पिछले दिनों बिहार के सारण जिला में हुई मौतों के लेकर विपक्ष तो नीतीश कुमार पर हमलावर है ही साथ ही वह लोग भी नीतीश के शराब बन्दी मॉडल पर सवाल उठा रहे हैं जो अभी अभी राजनीति में आए हैं या आना चाह रहे हैं। जहरीली शराब कांड एक खेद जनक मामला है, इसके लिए विपक्ष का सरकार पर सवाल उठाना बनता है, अब यह एक अलग बात है कि इस कांड में सरकार की गलती है या नहीं।

लेकिन नीतीश के लिए अफसोस और परेशानी इस बात की है कि उनके गठबन्धन की सरकार में शामिल सहयोगी दलों के लोग भी अब इस कांड को लेकर नीतीश और सरकार के विरोध में बोल रहे हैं, ना सिर्फ बोल रहे हैं बल्कि सरकार की शराब बन्दी की नीति को ग़लत ठहराते हुए, इस कांड में मरने वालों के लिए मुआवजे की मांग का समर्थन कर रहे है। और मुआवजा न मिलने पर धरना प्रदर्शन तक की बात भी कह रहे हैं।

बिहार सरकार में गठबन्धन में शामिल सहयोगी CPI(ML) ने भी अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सीपीआई के विधायक मनोज मंजिल ने मौत के आंकड़ों पर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा है कि मद्य निषेध विभाग के मंत्री के पास जो आंकड़ा है वह सही नहीं है। मनोज मंजिल ने कहा है कि अगर सरकार मृतकों के परिजनों को मुआवजा नहीं देती है तो माले पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन करेगी।

कांग्रेस की विधायक प्रतिमा कुमारी ने कहा है कि शराबबंदी बिहार में पूरी तरह नाकाम है। शराबबंदी पर लगी पाबंदियों को हटाना चाहिए। हिंदी के कारण बड़ा नुकसान हो रहा है हमें सच्चाई से आंखें चुरानी नहीं चाहिए।

वहीं बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने छपरा में जहरीली शराब से मौत को लेकर कहा कि शराब से होने वाली मौत पर मुआवजा मिलना चाहिए। इस बारे में हमलोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करेंगे।

अब विपक्ष की छोड़िए जब गठबंधन में शामिल लोग ही सरकार की किसी नीति के को लेकर विरोध में खड़े हो जाएं तो फिर ऐसी स्थिति में सरकार के सामने कितनी कठिन परिस्थितियां उत्पन्न हो जाएंगी इसका अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है। शायद कुछ ऐसी ही परिस्थिति बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने है। विपक्ष के कटाक्ष, उनकी प्रतिक्रियाओं और उनके सवालों का जवाब देना शायद नीतीश कुमार के लिए आसान हो लेकिन अपने सरकार की सहयोगी पार्टियों के कटाक्ष का का तीर उनके सीने में किस तरह चुभ रहा होगा यह तो वही जानते हैं।

सारन हो या छपरा या बिहार ही नहीं बल्कि देश के किसी कोने में अगर किसी की मौत होती है, और एक साथ समूह दस, बीस, पचास या उससे अधिक लोग मौत का शिकार होते हैं, तो निसंदेह ही अफसोस की बात है। और हर व्यक्ति को उसका खेद होता है। जहरीली शराब कांड का मामला कुछ अलग है, इस कांड में ऐसे लोगों की मृत्यु हुई है जिन्हें लगातार पिछले 6 सालों से सरकार द्वारा जहरीली शराब के सेवन और उसकी भयावहता की जानकारी दी जा रही थी और उस से दूर रहने की चेतावनी दी जा रही थी, लेकिन अफसोस कुछ लोग जानते हुए भी अपनी गलतियों से बाज नहीं आ रहे थे और आखिरकार उनके साथ वह घटना घटित हो गई जिससे उनको बचाने के लिए सरकार रात दिन प्रयासरत थी। कुछ देर के लिए यहां सरकार की बात को भी बाएं तरफ रखिए स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी सोचा जाए और डॉक्टरों की मानें तो शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और यह बात शराब के बोतल या पैकेट पर भी अच्छी तरह लिखी हुई होती है। उसमें भी सस्ती और लोकल या जाली शराब जो बाद में चलकर जहरीली शराब का रूप ले लेती है उसका सेवन किसी भी रूप में बिल्कुल दुरुस्त नहीं है।

अब जरा ईमानदारी पूर्वक इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या वाकई शराब पीना इतना पूर्ण का काम है जिसको बंद करके नीतीश कुमार अपोजीशन और अपनी ही सहयोगी पार्टीयों की दुश्मनी मोल ले रहे हैं? क्या वाकई शराब समाज के लिए फायदेमंद है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर भला इतने सारे सियासी लोग क्यों शराब बंदी को गलत बतलाने पर तुले हुए हैं?

वहीं दूसरा बात यह है कि क्या वाकई नीतीश कुमार को घटना में शामिल लोगों के परिजनों को मुआवजा देना चाहिए, क्या विपक्ष या उन नेताओं को मुआवजे का समर्थन करना चाहिए, क्या किसी भी रूप में सरकार इस घटना के लिए जरा सी भी दोषी करार दी जानी चाहिए? इन सब सवालों के जवाब इमानदारी पूर्वक ढूंढने की आवश्यकता है।

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