Sunday, November 24, 2024

26 हफ्ते का गर्भ गिराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मांगी एम्स की नई रिपोर्ट, सोमवार को सुनवाई

तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक विवाहित महिला की 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स मेडिकल बोर्ड को प्रसवोत्तर मनोविकृति के इलाज के लिए महिला को दी गई दवाओं का भ्रूण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में नई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

सीजेआई डी.वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बुधवार को एक अन्य पीठ द्वारा खंडित फैसला सुनाए जाने के बाद दूसरे दिन मामले की सुनवाई की।

पीठ ने मेडिकल बोर्ड को एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया कि क्या एमटीपी अधिनियम की धारा 3 की उपधारा (2)(बी) के अनुसार कोई महत्वपूर्ण असामान्यता है।

पीठ ने मेडिकल बोर्ड से यह जांच करने के लिए भी कहा कि क्या ऐसा कोई सबूत है, जो यह बताता हो कि प्रसवोत्तर मनोविकृति के इलाज के लिए निर्धारित दवाओं से गर्भावस्था को पूरी अवधि तक जारी रखना खतरे में हो जाएगा।

सीजेआई ने बोर्ड से यह पता लगाने को कहा कि यदि महिला प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित है और उसे इसके इलाज की जरूरत है, तो क्या भ्रूण की सुरक्षा के लिए कोई वैकल्पिक दवा उपलब्ध है।

एम्स की मेडिकल रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद अदालत सोमवार को मामले पर दोबारा सुनवाई करेगी।

महिला की ओर से पेश वकील ने अदालत के समक्ष कहा था कि याचिकाकर्ता की दो बार सी-सेक्शन डिलीवरी हुई है और वह डिलीवरी के बाद प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित है।

उन्होंने अदालत का ध्यान प्रसवोत्तर अवसाद और प्रसवोत्तर मनोविकृति के बीच अंतर की ओर आकर्षित किया। यह कहते हुए कि संबंधित महिला उन दवाओं के बिना एक दिन भी नहीं रह सकती, जो अजन्मे बच्चे के लिए हानिकारक हैं। उन्होंने आगे कहा कि महिला मतिभ्रम से पीड़ित है और उसने अपनी बीमारियों के कारण आत्महत्या का प्रयास किया है।

वकील ने अदालत को यह भी बताया कि प्रसवोत्तर मनोविकृति से शिशुहत्या का भी खतरा होता है। और यही वजह है कि उनके बाकी दोनों बच्चे उनकी सास की देखरेख में हैं।

उन्होंने आगे कहा कि अगर उसे या डॉक्टर को गर्भावस्था के बारे में पता होता, तो डॉक्टर उसे अवसाद की भारी दवाएं नहीं देते।

केंद्र की ओर से पेश एएसजी भाटी ने अपनी दलील में कहा कि मौजूदा कानून के तहत, मेडिकल बोर्ड की राय को प्रधानता दी जाती है और याचिकाकर्ता के मामले में बोर्ड ने भ्रूण की व्यवहार्यता का हवाला देते हुए समाप्ति से इनकार कर दिया है।

पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता के नुस्खे पर गौर किया। सीजेआई ने तब बताया कि सभी नुस्खे बीमारी की प्रकृति के बारे में चुप हैं और इससे नुस्खों की वैधता पर संदेह पैदा होता है।

तब अदालत ने फैसला किया कि एक नई चिकित्सा राय की आवश्यकता है।

अदालत ने गुरुवार को याचिकाकर्ता को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए 24 घंटे का समय दिया और एएसजी और याचिकाकर्ता के वकील को याचिकाकर्ता से बात करने और उसे समझाने की कोशिश करने और शुक्रवार को वापस आने का निर्देश दिया था।

यह भी पढ़े: बिहार में मंदिर की छत पर सोए 2 लोगों की गला काटकर हत्या

Related Articles

Stay Connected

7,268FansLike
10FollowersFollow

Latest Articles