तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। बिहार में जाति आधारित जनगणना को लेकर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। इस बीच, बुधवार को विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने जाति आधारित जनगणना को लेकर भाजपा को घेरते हुए कहा कि बिना जाति आधारित जनगणना के बिहार में कोई जनगणना नहीं होने देंगे।
इधर, भाजपा ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। भाजपा ने राजद को आईना दिखाते हुए 2011 में जाति जनगणना के नाम पर 5500 करोड़ रुपए के कथित घोटाले की जांच की मांग की है।
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने जाति आधारित जनगणना को लेकर भाजपा को घेरते हुए ट्वीट कर लिखा कि भाजपा घोर सामाजिक न्याय विरोधी पार्टी है। बिहार विधानसभा से जातिगत जनगणना कराने का हमारा प्रस्ताव दो बार सर्वसम्मति से पारित हो चुका है। लेकिन भाजपा और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लिखित में जातिगत जनगणना कराने से मना कर दिया है।
उन्होंने आगे लिखा कि बिना इसके बिहार में कोई जनगणना नहीं होने देंगे।
इधर, भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री और बिहार भाजपा प्रवक्ता डॉ. निखिल आनंद ने तेजस्वी यादव द्वारा जाति जनगणना को लेकर केंद्र सरकार को आरोपित करने पर पलटवार किया। उन्होंने यूपीए सरकार में वर्ष 2011 में कराए गए जाति जनगणना को घोटाला करार देते हुए केंद्र सरकार से जांच कराने की मांग की है।
निखिल आनंद ने कहा कि जाति जनगणना की मांग करने वालों को पहले कांग्रेस से पूछना चाहिए कि उन्होंने आजादी के बाद से ओबीसी के साथ लगातार विश्वासघात क्यों किया और 2011 में जाति जनगणना को लेकर यूपीए ने 5500 करोड़ का घोटाला क्यों किया? क्या तेजस्वी यादव 2011 के जाति जनगणना घोटाले की जांच कराने की मांग करते हैं?
उन्होंने कहा कि 2011 में जाति जनगणना कराने को लेकर संसद में 2010 में एक विस्तृत बहस हुई थी। भाजपा को दोष देने वालों को संसद के रिकॉर्ड से दस्तावेज निकालकर पढ़ना- सुनना चाहिए कि हमारे नेता अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, गोपीनाथ मुंडे सहित अन्य लोगों ने इस मुद्दे पर क्या कहा था।
सदन में उक्त बहस के बाद, यूपीए सरकार जाति जनगणना कराने के लिए सहमत हो गई। आमतौर पर जनगणना अधिनियम के तहत जनगणना की जाती है। उस समय यूपीए सरकार ने नियमित जनगणना के साथ जाति जनगणना नहीं कराया बल्कि जनगणना अधिनियम का उल्लंघन करते हुए अलग से अपनी पसंद की निजी एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा जाति जनगणना करवाई। जिसपर 5,500 करोड़ रुपये बर्बाद किए गए। यूपीए द्वारा जाति जनगणना के नाम पर सैम्पल सर्वे कराकर पैसे लुटे गए। यही कारण है कि इतनी सारी डेटा विसंगतियां हैं।
आनंद ने कहा कि यह वाकई हास्यास्पद है कि 2011 में यूपीए द्वारा कराए गए जातिगत जनगणना में 4,28,000 जाति की सूची सामने आ गई और 10 करोड़ से ज्यादा त्रुटियां पाई गई हैं।
भाजपा नेता ने कहा कि जाति जनगणना सिर्फ एक मुद्दा है। सामाजिक न्याय का पूरा विचार जाति जनगणना तक सीमित नहीं हो सकता। जनसंघ के शुरूआती दिनों से ही भाजपा सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी पैरोकार रही है। भाजपा का ²ष्टिकोण सामाजिक न्याय के प्रति बहुत व्यवहारिक हैं।