Sunday, December 22, 2024

सेनारी नरसंहार: आरोपियों को बरी करने के फैसले के खिलाफ सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को पटना हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली बिहार सरकार की अपील पर विचार करने के लिए सहमत हो गया, जिसमें 1999 में सेनारी नरसंहार मामले में दोषी ठहराए गए 13 लोगों को रिहा कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने बिहार सरकार की अपील को विचार के लिए स्वीकार कर लिया और राज्य को सभी बरी किए गए आरोपियों पर नोटिस देने को कहा।

प्रतिबंधित माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के कैडर द्वारा 34 उच्च जाति के लोगों के दो दशक पुराने नरसंहार में 13 आरोपियों में से 10 को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी।

राज्य सरकार ने अपनी अपील में कहा कि आरोपी निचली जाति के चरमपंथी संगठन एमसीसी से संबंधित हैं और उन्होंने उच्च जाति के निहत्थे और रक्षाहीन सदस्यों के खिलाफ शातिर हमला किया था।

यह हमला उनके वर्चस्व को स्थापित करने की ²ष्टि से किया गया था और यह दुर्भाग्यपूर्ण जाति-आधारित संघर्षों का नतीजा था।

राज्य सरकार ने अधिवक्ता अभिनव मुखर्जी के माध्यम से दायर अपील में कहा, अभियोजन के मामले को कुल 23 गवाहों का समर्थन प्राप्त है, जिनमें से 13 प्रत्यक्षदर्शी हैं। उन लोगों ने सामूहिक नरसंहार में अपने करीबी परिवार को खो दिया।

मई 2021 में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए 13 आरोपियों को बरी कर दिया था। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के निष्कर्ष रिकॉर्ड पर रखे गए साक्ष्य और इस माननीय न्यायालय द्वारा कानून के विभिन्न सिद्धांतों पर घोषित कानून के विपरीत हैं। राज्य सरकार ने तर्क दिया, यह प्रस्तुत किया गया है कि उच्च न्यायालय ने मुख्य रूप से गलत आधार पर 13 लोगों की गवाही को खारिज कर दिया, जो घटना के घायल गवाहों सहित चश्मदीद गवाह हैं।

नवंबर 2016 में, जहानाबाद जिला अदालत ने 10 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी और तीन अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और 23 अन्य को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार 18 मार्च 1999 को कथित एमसीसी सदस्यों ने भूमिहार समुदाय के 34 लोगों को सेनारी गांव में एक मंदिर के पास लाइन में खड़ा करने के लिए मजबूर किया और उनका गला काटकर और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

राज्य सरकार ने प्रस्तुत किया कि सबूत स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि आरोपी व्यक्ति मौजूद थे और नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे।

बता दें कि सेनारी हत्याकांड 18 मार्च 1999 की शाम को हुआ था, जब वर्तमान अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी थाना के सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। सेनारी गांव में एक मंदिर के पास माओवादी संगठन के कथित सदस्यों ने 34 लोगों को लाइन में खड़ा करके उनका गला काटकर और गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी थी।

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