(अब्दुल मोबीन)
आज हर व्यक्ति की नजरें बिहार के सियासी घटनाक्रम पर टिकी हैं। एक तरफ देश की सत्ताधारी पार्टी एनडीए बिहार की सियासी कुर्सी पर विराजमान होना चाहती है तो दूसरी तरफ महागठबंधन में शामिल बिहार का घटक दल राजद अपने सियासी वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। इन दोनों के बीच नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हर हाल में काबिज रहना चाहते हैं।
मुख्य रूप से विगत दो दिनों से बिहार की सियासत में बड़ा हलचल मचा हुआ है, देश के गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के लीडर अमित शाह पिछले दो दिनों से भाजपा से जुड़े बिहार के तमाम कद्दावर नेताओं के साथ दिल्ली में बैठकर कर रहे हैं, और किसी भी तरह से जदयू के साथ मिलकर बिहार में एनडीए की सरकार बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ राजद सुप्रीमो लाल यादव भी अपने तमाम विधायकों के साथ बैठक कर रहे हैं, महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने भी अपने विधायकों के साथ शनिवार को पूर्णिया में बैठक किया। यानी कांग्रेस राजद और लेफ्ट हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि नितेश कुमार के अलगाव के बावजूद किसी भी तरह से बिहार में महागठबंधन की सरकार बन जाए। बिहार का ऐतिहासिक संकट लाल तेजस्वी और कांग्रेस के लिए एक बड़ा चुनौती लेकर आया है।
शनिवार सुबह से ही यह खबरें सामने आ रही है के नीतीश कुमार एक बार फिर से पाला बदलने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और इस बार भाजपा की तरफ रुख कर रहे हैं। खबरों की माने तो नीतीश कुमार और भाजपा में बिहार को लेकर सारे मुआहदे तय हो चुके हैं।
वहीं राजद सरकार बनाने के लिए जादू आंकड़ों की तलाश में पूरी तरह जुटी हुई है। इस बीच यह समझना जरूरी है कि बिहार में किन पार्टियों के पास कितने विधायक हैं। बिहार में जेडीयू के पास 45 और कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। लेफ्ट के पास 16 विधायक हैं। एक विधायक सुमित कुमार सिंह निर्दलीय हैं और AIMIM के पास एक विधायक अख्तरुल ईमान हैं। हम पार्टी के पास चार विधायक हैं। विपक्ष में भाजपा, हम और एआईएमआईएम पार्टी है। जादुई आंकड़ा 122 का है। नीतीश कुमार अगर लालू प्रसाद का साथ छोड़ कर भाजपा के साथ जाते है तो उनके (जेडीयू) के पास 45, बीजेपी के 78, हम पार्टी के 4 और एक निर्दलीय होगा। यानी 127 विधायक होंगे। दूसरी तरफ आरजेडी के पास 79 कांग्रेस के पास 19, लेफ्ट के 16 हैं। यानी कुल मिलाकर महागठबंधन के पास 114 विधायक हैं, सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का समर्थन जरूरी है, ऐसी स्थिति में लालू की सोच है कि मांझी के चार विधायक, एक निर्दलीय और एमआईएम के एक विधायक अगर साथ आ जाते हैं तो उनकी संख्या बल 120 हो जाएगी। लेकिन बहुमत का आंकड़ा फिर भी पूरा नहीं होगा, उसके लालू को जदयू या भाजपा के विधायकों को अपने पाले में लाना होगा, जो अभी के सियासी घटनाक्रम के बीच संभव नहीं लग रहा है।
अब यह तो रविवार का दिन ही तय करेगा क्योंकि यह खबर सामने आ रही है कि रविवार की सुबह 10:00 बजे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पद से इस्तीफा देंगे और शाम 4:00 बजे भाजपा के साथ मिलकर पुनः नवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे।
दूसरी तरफ राजद और कांग्रेस हर संभव प्रयास कर रही है कि या तो नीतीश कुमार भाजपा की ओर जाने से रुक जाएं, या फिर नीतीश के बिना ही राजद कांग्रेस लेफ्ट माझी और एमआईएम के समर्थन से बिहार में महागठबंधन की सरकार बने। अपने इस मंसूबे की प्राप्ति के लिए राजद हर सियासी त्याग और बलिदान देने के लिए भी तैयार है। महागठबंधन की सरकार बनाने के लिए लाल यादव ने मांझी को मुख्यमंत्री पद का भी ऑफर दे दिया है। वहीं भाजपा भी मांझी को अपनी तरफ़ खींचने के लिए सियासी हथकंडे अपना रही है।
अब देखना है कि बिहार का सियासी ऊंट किस करवट बैठता है। क्या बिहार में एनडीए की सरकार रविवार को बनती है या लालू अपना कुछ सियासी करिश्मा दिखा पाते हैं।