तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। बिहार के मुसलमानों के लिए नीतीश सरकार ने रमजान के महीने में राहत देने की घोषणा की है। सरकार ने अपने घोषणा में कहा है कि बिहार के सभी मुस्लिम कर्मचारियों को उनके ड्यूटी समय में एक घंटे की राहत दी जाएगी। यानी जो भी मुस्लिम कर्मचारी हैं वह अपने ड्यूटी समय से एक घंटे पहले कार्यालय आएंगे और एक घंटे पहले कार्यालय से चले जाएंगे। यह सहुलत विशेष रूप से रमजान के महीने के लिए दी जाएगी। मुस्लिम रोजदारों के लिए सरकार की ओर से यह राहत दी गई है।
इस खबर को सभी प्रकार की मीडिया बड़ी खुशखबरी के रूप में प्रसारित कर रही है। सरकार के इस ऐलान का प्रचार करते हुए इसे सराहनीय कदम बताया जा रहा है।
वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने सरकार की इस घोषणा के बाद अन्य धर्मों को भी उनके त्योहारों के अवसर पर इस प्रकार की विशेष राहत की मांग की है। उनकी मांगे जायज भी हैं। क्यूंकि भारत एक धर्मनिपेक्ष देश है और बिहार उसका एक राज्य।
लेकिन सरकार, मुस्लिम कर्मचारी या फिर अन्य लोगों को सोचना चाहिए कि क्या वास्तव में सरकार मुस्लिम कर्मचारियों को राहत दे रही है? या फिर राहत के नाम पर झुटी तसल्ली दी जा रही है। राहत का मतलब क्या है?
सरकारी कार्यालयों में निर्धारित छ:, सात या आठ घंटे काम करना सभी कर्मचारियों के लिए जरूरी है, बायोमैट्रिक हाजरी भी लगती है। कर्मचारी लोग निर्धारित समयनुसार कार्यालय आते जाते हैं। यदि किसी कर्मचारी का कार्यालय समय 6 घंटे का हो और उसे पांच या चार घंटे काम करना हो फिर चले जाना हो तब जाकर उन्हें एक या दो घंटे की राहत मिलेगी। लेकिन जब किसी को 10 बजे से शाम 4 बजे के बजाय 9 बजेजे से 3 बजे तक काम करना पड़े तो भला राहत कैसे हुई। छ: घंटे तो उसने काम किया ही है। एक घंटे पहले आने और एक घंटे पहले जाने में कौनसी राहत मिली यह तो सरकार ही जाने।
यदि सचमुच सरकार राहत देना चाहती है तो अन्य कर्मचारियों के साथ मुस्लिम कर्मचारियों को भी निर्धारित समय पर कार्यालय बुलाए और एक घंटे पहले जाने की अनुमति दे तब जाकर एक घंटे की राहत मिलेगी, जिसके लिए मुस्लिम कर्मचारी सरकार के आभारी होंगे। लेकिन ऐसे बेतुके राहत के लिए कौन मुस्लिम कर्मचारी खुश होगा। पता नहीं सरकार को इसमें किस प्रकार से राहत समझ में आ रही है।