Tuesday, December 3, 2024

भारत के माहौल को लेकर अब्दुल बारी सिद्दीकी के बयान से मुसलमानों के जज़्बात आहत

तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। कहा जाता है कि कमान से निकली हुई तीर से ज्यादा जबान से निकली हुई बात चोट पहुंचाती है। और यह घाव तब और भी अधिक गहरा हो जाता है जब किसी बड़े समूह का प्रतिनिधत्व करने वाले व्यक्ति की बात से पहुंचा हो। आज भारत के लगभग पच्चीस करोड़ मुसलमानों को भी कुछ ऐसा ही घाव राजद के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी ने अपने बयान से दिया है। विदित हो कि अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भारत के माहौल को मुसलमानों के लिए असुरक्षित बताया है। अब्दुल बारी सिद्दीकी के इस बयान की भाजपा नेताओं द्वारा कड़ी निनंदा की जा रही है और उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने की भी मांग कर रहे हैं।

खैर नेताओं का किसी बात को लेकर किसी की निंदा करना यह तो सियासी विषय है। निंदा करने वालों को इस बात से कोई लेना देना नहीं होता है कि किसी बयान से भारत के किस समूह के जज्बात कितने आहत हुए हैं, और उस समूह के भूत, वर्तमान और भविष्य काल पर उस बयान का कितना गहरा असर पड़ा है। अब्दुल बारी सिद्दीकी द्वारा दिया गया यह बयान भले ही भाजपा या अन्य पार्टियों के लिए एक विवादास्पद या निनंदा का एक सियासी हाथियार हो। लेकिन मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि होने के नाते उनका यह बयान इस समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय है।

अब्दुल बारी सिद्दीकी ने क्या कहा:
एक उर्दू अखबार की ओर से विधान परिषद के नये सभापति देवेश चंद्र ठाकुर के सम्मान समारोह में आयोजित एक कार्यक्रम में राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा कि मैं अब भारत में सुरक्षित महसूस नहीं करता, भारत का माहौल मुसलमानों के रहने के लायक नहीं है, मैं अपने बच्चों को भारत से बाहर अन्य देश में बसने की सलाह दे चुका हूं।

सिद्दीकी के इस बयान के क्या मायने हैं, उन्होंने किस सोच के तहत यह बयान दिया यह तो वही जानते हैं। लेकिन 25 करोड़ भारतीय मुसलमान जिन्होंने इस देश के लिए अपने लहू का हर कतरा बहाया है, हर बलिदान दिया है, अंग्रेजों से इस देश को आजाद कराने में अन्य भारत वासियों के साथ मुसलमानों ने भी हर जुल्मों सितम सहा है, इस देश को सींचने में जी जान लगाया है, क्या अब यह देश उनके रहने के लायक नहीं, क्या अब मुसलमानों को अन्य देशों में जाकर बस जाना चाहिए। आखिर क्यों?

क्या मात्र इस कारण से कि यहां हिन्दू मुस्लिम के झगड़े हैं, यह झगड़े हिन्दू मुस्लिम के नहीं बल्कि भाई भाई के झगड़े हैं, इन झगड़ों से नफ़रत नहीं बल्कि मोहब्बत की खुशबू आती है, इतिहास साक्षी है कि इन आपसी लड़ाई झगड़ों ने कभी भी हमारे दरम्यान दीवार नहीं बनाया, बल्कि तिरंगे को मजबूती से थामने के लिए हर समुदाय ने मजबूती से अपने हाथ उठाए हैं। जब भी भारत की आन बान और शान की बात आई हम सब एक साथ खड़े रहे।

जिस वक्त देश हिंदुस्तान और पाकिस्तान के 2 नामों में बन्ट रहा था उस समय देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने जामा मस्जिद की सीढ़ियों से मुसलमानों को यह आवाज दिया था कि ऐ मुसलमानों तुम अपने देश को छोड़कर कहां जा रहे हो जहां भी जाओगे वहां के लिए तुम मुहाजिर ही कहलाओगे। अब अगर मौलाना आजाद की सोच अब्दुल बारी सिद्दीकी की तरह होती तो भारत के 25 करोड़ मुसलमानों का बेड़ा निश्चित ही गर्क हो जाता।

अब्दुल बारी सिद्दीकी का यह बयान किसी भी रूप में दुरुस्त नहीं है। माहौल की खराबी या अन्य किसी भी कारणों से अपने मात्रभूमि को छोड़ने वाली बात किसी भी समुदाय के लिए खेद जनक है। अब्दुल बारी सिद्दीकी के दो बच्चे जो हार्वर्ड या लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स में पढ़ते हैं, उनके पास इतने पैसे हैं कि वह किसी भी देश में बस जाएं तो क्या उन्हीं की तरह भारत के अन्य 25 करोड़ मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वह किसी अन्य देश में जाकर बस जाएं? हो सकता है कि कुछ हजार या कुछ करोड़ मुसलमान इस योग्य हों कि वह ऐसा कदम उठा भी ले तो क्या उन्हें उस देश में वही सम्मान मिल पाएगा जो भारत में मिलता है, क्या गर्व से उस देश में यह बात कह सकेंगे कि:
“हमारा लहू भी है शामिल यहां की मिट्टी में”

अब्दुल बारी सिद्धकी जैसे कद्दावर नेताओं को जो मुस्लिम कौम का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें किसी बयान से पहले कई बार सोचना चाहिए। इन जैसे नेताओं के बयान मुसलमानों के जज्बात व इरादों को मजबूत और दृढ़ संकल्पित करने की दिशा में हो ना कि उनके दिलों में मायूसी भरने वाले हों।

Related Articles

Stay Connected

7,268FansLike
10FollowersFollow

Latest Articles