खाद की किल्लत और कालाबाजारी से अन्यदाता परेशान

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तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। यूरिया खाद की किल्लत और कालाबाजारी से बिहार के सभी किसान परेशान हैं। खाद की परेशानी धान के सीजन से लेकर गेहूं की बुवाई तक किसानों के सामने खड़ी हुई है। पिछले दो फस्ली सीजन से किसानों को खाद की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ष धान की बुआई और रोपाई तक खाद के पर्याप्त मात्रा में न मिलने और मूल्य से दुगने तिगुने दामों के कारण धान की फसलों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इस कड़ी में पूर्वी चंपारण के किसान कुछ ज्यादा ही परेशान दिख रहे हैं। 266 या 267 रू में बिकने वाला यूरिया किसानों को 450 से ₹600 तक के महंगे दामों में लेना पड़ा है। कम जमीनों वाले गरीब किसानों ने तो आवश्यकता से आधा खाद ही अपने खेतों को दिया है। जिसकी वजह से पैदावार पर इसका असर पड़ा है। पूर्वी चंपारण के किसानों के सामने एक तरफ तो बारिश की समस्या थी वक्त पर बारिश का ना होना उनके लिए कठिनाई बनी हुई तो थी उस पर खाद की किल्लत ने किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।

पूर्वी चंपारण का उत्तरी इलाका नेपाल से सटा हुआ है, नेपाल से सटे क्षेत्रों में बसे चंपारण के कुछ दुकानदारों ने तो धड़ल्ले से खाद की कालाबाजारी की है। जिसकी समय समय से खबरें भी सामने आई है लेकिन प्रशासन ने क्या कार्रवाई किया यह अब तक किसी को पता नहीं।

इसकी जिम्मेदार पूरी तरह से सरकार है जिसने एक तो आवश्यकता अनुसार बाजार या दुकानदारों को खाद मुहैया नहीं करा पाई। कृषि विभाग के मुताबिक 2022-2023 तक बिहार को 4800 मीट्रिक टन अकार्बनिक उर्वरक देने का लक्ष्य था। जबकि 31 जुलाई तक 1316 मीट्रिक टन दिया गया था। जिसके कारण इस वर्ष धान की फसल प्रभावित हुई। अब जबकि गेहूं की बुआई का समय अब भी बाज़ार में पर्याप्त यूरिया खाद नहीं है। और सरकार ने जो खाद आवंटित किया है दुकानदार बड़े पैमाने पर उसमें भी कालाबाजारी करते नजर आ रहे हैं। आज पूर्वी चंपारण के किसान ₹600 तक एक बोरी यूरिया लेने पर विवश हैं।

कृषि प्रधान माने जाने वाले इस राज्य में यदि किसानों को खाद की इतनी किल्लत ऐसी कठिनाई सामने है तो यह बिहार की तरक्की के किस पायदान को दर्शाता है यह बखूबी समझा जा सकता है। सरकार को चाहिए कि किसानों की समस्या की तरफ शीघ्र ध्यान दें और पर्याप्त मात्रा में खाद मुहैया कराए, और संबंधित पदाधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दे कि हर संभव तरीके से खाद की कालाबाजारी को रोका जा सके।