(अब्दुल मोबीन)
पिछले दिनों हुए पांच राज्यों में से चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आज 3 दिसंबर को सामने आ गए हैं कहीं खुशी कहीं गम की तर्ज पर भाजपा में खुशी की लहर पाई जा रही है जबकि कांग्रेस का चेहरा मुरझाया हुआ है। चार राज्यों में से तीन राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीस गढ़ में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर कब्जा जमाया है। वहीं तेलंगाना में कांग्रेस सत्ता छीनने में कामयाब रही है। जबकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ दो राज्यों को भाजपा ने कांग्रेस के हाथों से छीन लिया है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान की जनता ने कांग्रेस की बजाय भाजपा पर विश्वास जताया है। इसके साथ ही उत्तर भारत के सभी राज्यों में भाजपा ने पूरी तरह अपना कब्जा जमा लिया है। वहीं दक्षिण यानी तेलंगाना में कांग्रेस ने टीआरएस को सत्ता से बे दखल करते हुए अपना कब्जा जमाया है। तेलंगाना में जीत दर्ज करना कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत को जीतने की ओर एक मजबूत कदम के तौर पर देखा जा सकता है।
मध्य प्रदेश की कुल सीटों की संख्या 230 है बहुमत के लिए 116 सीटें चाहिए थी। जहां बड़ा ही शानदार प्रदर्शन करते हुए भाजपा ने 163 सीटों पर कब्जा जमा लिया, मात्र 66 सीटों पर कांग्रेस सिमट गई, एक मात्र सीट ही अन्य के खाते में गई।
मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत का कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मेहनत, विकास के कामों में उनकी सक्रियता, और चुनाव प्रचार में मोदी फैक्टर बताया जा रहा है। वहीं आरएसएस संगठन के लोगों का मध्य प्रदेश में सक्रिय रहना भी भाजपा की जीत का बड़ा कारण है। वहीं कांग्रेस की हार का विश्लेषण करें तो कमलनाथ का अहंकार मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना है, वहीं कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की चुनावी रणनीति की कमजोरी, जनता को लुभाने की नाकामी और कमजोर मंसूबा बंदी को भी दर्शाता है। दूसरे शब्दों में कहे तो मध्य प्रदेश की जनता ने भाजपा के पिछले कार्यकाल से खुश होकर इस बार भी विश्वास जताया है।
राजस्थान जहां कुल सीटों की संख्या 199 है बहुमत के लिए 101 सीट चाहिए थी लेकिन बीजेपी ने प्रचंड बहुमत यानी 115 सीट हासिल की। और कांग्रेस मात्र 69 सीटों पर सिमट कर रह गई। समाज वादी पार्टी ने दो सीट हासिल की जबकि 13 पर अन्य का कब्जा रहा। विदित हो कि राजस्थान में विधान सभा सीटों की कुल संख्या 200 है, लेकिन एक सीट पर चुनाव नहीं हो सका है।
ज्ञात हो कि आज से पूर्व पिछले 5 सालों तक राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रही अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के तौर पर रहे लेकिन पिछले 5 साल में राजस्थान कांग्रेस में अंदरूनी कलह पूरी तरह देखा गया सचिन पायलट और अशोक गहलोत की आपसी रंजिश ने कांग्रेस को प्रदेश में कमजोर करने का काम किया और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पायलट और गहलोत के झगड़ों की खाई को काटने में नाकाम रहा जिसका खामियाजा भुगतने को मिला है।
छत्तीसगढ़ जहां कुल सीटें 90 हैं बहुमत के लिए 46 का आंकड़ा चाहिए था, भाजपा ने बहुमत के जादुई आंकड़े को आसानी से पार करते हुए 54 सीटें हासिल की जबकि कांग्रेस महज 35 सीट ही हासिल कर पाई। एक मात्र सीट अन्य के खाते में गई। छत्तीसगढ़ में पिछले 5 सालों तक कांग्रेस की सरकार थी लेकिन जनता ने अब कांग्रेस को ना करते हुए सट्टा की बागडोर भाजपा के हवाले कर दिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस की नाव को पार लगाने में विफल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में मोदी मैजिक पूरी तरह हावी होता हुआ नजर आया है। नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए बिना ही चुनाव प्रचार किया था हां यह बात जरूर है कि डॉक्टर रमन सिंह का भी बहुत अहम रोल रहा है और हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा डॉक्टर रमन सिंह को ही मुख्यमंत्री की जिम्मेवारी सौंपे।
तेलंगाना जहां कुल सीटों की संख्या 119 है। सरकार बनाने के लिए 60 सीटें चाहिए थी। जिसमें कांग्रेस का दमखम दिखा और बहुमत की आंकड़े को पार करते हुए 64 सीटें लाने में कामयाब रही। भारत राष्ट्र समिति पार्टी ने 39 सीटें हासिल की। तिलंगाना में भाजपा को थोड़ा झटका लगा और 8 सीटों पर ही सिमट गई। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मीम को 7 सीटें मिलीं, और अन्य के खाते में मात्र एक सीट आई। बड़ी मशक्कत के बाद मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में से मात्र एक राज्य तेलंगाना में ही कांग्रेस अपना सियासी वजूद बचाने में कामयाब रही।
वहीं इन पांच राज्यों में हुए चुनाव में से एक मिजोरम राज्य बचा है जिसकी वोटो की गिनती कल यानि सोमवार को होनी है। अब देखना होगा कि यहां भी मोदी मैजिक ही काम करता है या मिजो नेशनल फ्रंट सत्ता बचाने में कामयाब होती है या फिर कांग्रेस का कोई जादू चलता है।
बहरहाल इन चार राज्यों के नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रह सकता है। वहीं इंडिया गठबंधन की आपसी तालमेल की कमी भी उजागर हो रही है, मुख्य रूप से नेशनल पार्टी कांग्रेस की सियासी रणनीति की कमजोरी, और शीर्ष नेतृत्व में कुशलता का आभाव भी साफ तौर पर झलक रहा है। इन नतीजे के बाद भी वक्त है कि कांग्रेस अपने अंदर की खामियों को दूर करें 2024 लोकसभा के संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि बहुत कठिन है डगर पनघट की।