(चंदन कुमार)। बिहार विधानसभा उप-चुनाव के नतीजे बिहार की सियासत में नए अध्याय की शुरुआत कर सकते हैं। तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव जहां महागठबंधन के भविष्य को तय करेगा, वहीं सत्तारुढ़ एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के लिए भी यह चुनाव परीक्षा से गुजरने जैसा होगा।
पहले बात करते हैं महागठबंधन के सियासी भविष्य को लेकर। गौरतलब है कि दोनों ही विधानसभा सीट जेडी-यू के पाले में रही है और इस वजह से इन दोनों सीटों पर फिर से जीत हासिल करने को लेकर जेडी-यू के ऊपर भारी दबाव है। लेकिन इससे कहीं ज्यादा विकट स्थिति महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई का है। बिहार में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) गठबंधन में लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं और पिछला विधानसभा चुनाव भी उन्होंने साथ में ही लड़ा था। हालांकि इस बार उप-चुनाव में आरजेडी ने कांग्रेस को दरकिनार करते हुए इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। माना जाता है कि कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने की वजह से तेजस्वी यादव ने यह फैसला किया। कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद से कांग्रेस और आरजेडी में तल्खी बढ़ी हुई है।
गौरतलब है कि पिछले चुनाव में कुशेश्वरस्थान सीट पर कांग्रेस नंबर दो पर रही थी, इसलिए इस सीट पर उसकी पहली दावेदारी बनती थी, लेकिन कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद आरजेडी ने कुशेश्वरस्थान और तारापुर सीट पर अपने उम्मीदवार को उतारकर साफ कर दिया कि वह इस बार आरपार की लड़ाई के मूड में है। कारण, कन्हैया कुमार के बढ़ते कद को लेकर आरजेडी में बेचैनी की स्थिति है और इन दोनों सीटों पर परिणाम कांग्रेस के मुताबिक नहीं आए तो आरजेडी के लिए कन्हैया को निशाना बनाना आसान हो जाएगा।
आरजेडी ने कुशेश्वस्थान से गणेश भारती और अरुण साह को तारापुर से टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस ने तारापुर से राजेश मिश्रा और कुशेश्वरस्थान से अतिरेक कुमार को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस इस इंतजार में थी कि आरजेडी कुशेश्वरस्थान से अपना उम्मीदवार वापस ले ले, लेकिन ऐसा नहीं होने के बाद उसने इन दोनों सीटों से पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। इस तरह देखा जाए तो दोनों दल इस सीट पर आर-पार की स्थिति में हैं। कन्हैया कुमार जहां इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे, वहीं तेजस्वी यादव आरजेडी उम्मीदवारों के लिए। देखा जाए तो यह चुनाव कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव के बीच की लड़ाई है, जिसमें आरजेडी की पूरी कोशिश कन्हैया कुमार के सियासी कद को कमतर साबित करने की होगी।
वहीं दूसरी तरफ सत्तारुढ़ गठबंधन एनडीए के भी इस चुनाव के कई मायने हैं। दोनों ही सीट पर पिछली बार जेडी-यू के उम्मीदवार जीते थे और उसके बाद से गंगा में काफी पानी बह चुका है। उपेंद्र कुशवाहा अब जेडी-यू में हैं और उन्हें शामिल करने का मतलब लव-कुश समीकरण को मजबूत करना था। तारापुर सीट पर अगर जेडी-यू का कब्जा होता है तो माना जाएगा कि जेडी-यू के लव-कुश समीकरण पर मतदाताओं ने मुहर लगा दी। इसके अलावा इन दोनों सीटों पर जेडी-यू को फिर से चुनाव जीतने के लिए बीजेपी की मदद की जरूरत होगी क्योंकि दोनों ही सीटों पर ऐसी कुछ जातियां हैं, जिसकी बीजेपी पर पकड़ मानी जाती है। बीजेपी अगर अपने मतदाताओं का वोट ट्रांसफर कराने में सफल रही तो कोई विवाद नहीं होगा लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो जेडी-यू और बीजेपी के संबंधों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में जेडी-यू का मानना रहा था कि वह अपने वोटर्स को बीजेपी उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान कराने में सफल रही थी लेकिन बीजेपी, जेडी-यू उम्मीदवारों के पक्ष में ऐसा नहीं करा पाई।