Thursday, November 21, 2024

उपेंद्र कुशवाहा, जदयू विधायक या फिर नीतीश कुमार का होगा भाजपा से मिलन, अटकलें तेज

(अब्दुल मोबीन)। इस समय बिहार की सियासत में एक प्रकार का भूचाल आया हुआ है। कभी फिर से नीतीश कुमार का पाला बदलकर भाजपा के साथ जाने की अटकलें, तो कभी जदयू विधायकों के भाजपा से संपर्क होने की खबरें, और उपेंद्र कुशवाहा का भाजपा नेताओं से मुलाकात। इन तीनों बातों में एक बात पूरी तरह से सच है, वह यह कि उपेंद्र कुशवाहा की पिछले दिनों दिल्ली के एम्स में भाजपा के तीन नेताओं से मुलाकात हुई है। अब यह मुलाकात औपचारिक है या फिर इसमें कुछ सियासी पेचीदगियां छुपी हुई है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

हो सकता है कि भाजपा से उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात औपचारिक हो। लेकिन उनकी मुलाकात पर संदेह का ग्रहण तब और गहरा हो जाता है जब दिल्ली से लौटने के बाद उपेंद्र कुशवाहा से मीडिया ने सवाल किया तो उन्होंने इस मुलाकात को औपचारिक नहीं बताया। बल्कि कुछ ऐसा बयान दिया जिससे शक और गहरा हो जाता है। उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि “किसी का व्यक्तिगत संबंध किसी के साथ हो सकता है, और जदयू के जितने बड़े नेता है उनका संबंध भाजपा से उतना ही गहरा है” उपेंद्र कुशवाहा ने आगे कहा कि “हमारी पार्टी 3 बार बीजेपी के संपर्क में गई और फिर पार्टी अपनी रणनीति के हिसाब से बीजेपी से अलग हुई”।
उपेंद्र कुशवाहा का यह शब्द कि हमारी पार्टी के जितने बड़े नेता है उनका संपर्क भाजपा से उतना ही मजबूत या गहरा है। इसके मायने यह निकलते हैं कि भले ही जदयू भाजपा से अलग हुई हो लेकिन आज भी एक दूसरे से जुड़ाव है। वहीं रणनीति के हिसाब से पार्टी का भाजपा में जाना और फिर अलग होना इस बात को दर्शाता है कि जो सियासी उथल-पुथल अभी बिहार के महागठबंधन में चल रहा है वैसे में हो सकता है कि जदयू अपनी रणनीति के हिसाब से फिर से भाजपा के साथ चली जाए।

यदि पार्टी का अपनी रणनीति के हिसाब से ही किसी से मिलना या बिछड़ना है तो ऐसी रणनीति जनता के हित में तो कतई नहीं हो सकती। यदि जदयू के लिए भाजपा की रणनीति गलत है या फिर भाजपा उनके साथ या फिर भाजपा बिहार की जनता के हित के लिए सही नहीं है तो फिर लगातार तीन बार उससे अलग होना और फिर उसी गलत रणनीति वाली बीजेपी से हाथ मिलाना, जदयू के ही गलत रणनीति को दर्शाता है। बार बार का मिलना बिछड़ना इस बात को भी दर्शाता है कि नीतीश कुमार की रणनीति बिहार के जनता के हित की रणनीति तो कतई नहीं है।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या उपेंद्र कुशवाहा जदयू का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हो सकते हैं? इस प्रश्न में थोड़ी सी सच्चाई जरूर मालूम होती है। क्योंकि अभी कुछ दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ लफ्जो में यह कह दिया कि बिहार में दो उपमुख्यमंत्री नहीं होंगे, जबकि दिल ही दिल में उपेंद्र कुशवाहा ने यह सोच पाल लिया था कि बीजेपी के साथ गठबंधन वाली सरकार में बिहार में दो-दो उपमुख्यमंत्री रहे हैं। तो अब यदि दूसरा उपमुख्यमंत्री बिहार में होगा तो मेरा नाम ही सामने आएगा। लेकिन नीतीश कुमार ने उनके तमन्नाओं पर पानी फेर दिया। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा का बीजेपी की तरफ झुका स्वाभाविक चीज है।

दूसरी तरफ देखा जाए तो राजद के विधायक सुधाकर सिंह और चंद्रशेखर सिंह के बयान पर राजद और जदयू के बीच वार पलटवार का दौर चल रहा है। दूसरे लफ्जों में कहा जाए तो बिहार की सियासत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। तेजस्वी चाह रहे हैं कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की गद्दी उन्हें सौंप दें जबकि जदयू के विधायक तेजस्वी से ज्यादा खुश नहीं दिख रहे हैं। और नीतीश कुमार का पिछला सारा रिकॉर्ड पाला बदलने का ही रहा है चाहे वह 2 दिन में हो या 2 साल में हो। जिस आदमी के पास पलटने का इतना अनुभव हो उनका एक जगह टिके रहना जरा मुश्किल मालूम होता है।

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