तिरहुत डेस्क (नई दिल्ली)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर और सब कैटेगरी सिस्टम लागू करने के फैसले के विरोध में बुलाए गए भारत बंद का असर बिहार, झारखंड, राजस्थान जैसे कई राज्यों में देखने को मिला। कई संगठन इस फैसले के विरोध में सड़कों पर उतर आए।
दुमका में भीम आर्मी, छात्र समन्वय समिति और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के कार्यकर्ताओं ने सड़क और दुकानों को बंद करवा दिया। शहर की फूलों झानो चौक पर ट्रकों को जाम कर दिया गया, और जेएमएम के कार्यकर्ताओं ने बस स्टेशन और टिन बाजार से बसों के परिचालन को बंद कराया। दुमका शहर में सभी दुकानें बंद रहीं। कई चौक चौराहों को भी बंद समर्थकों ने जाम कर दिया।
राजस्थान के टोंक में भी भारत बंद का असर देखने को मिला। सामाजिक संगठनों ने बैरवा धर्मशाला से आक्रोश रैली निकाली, जो शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई अम्बेडकर खेल स्टेडियम तक पहुंची। इस दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए और पुलिस के जवान तैनात रहे। व्यापार मंडल ने इस रैली और बंद का समर्थन किया है, जिससे बाजार पूरी तरह बंद रहा।
नालंदा में आरक्षण बचाओ, संविधान बचाओ अभियान के तहत द ग्रेट भीम आर्मी और अन्य संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया। बिहार शरीफ के अस्पताल चौक और देवीसराय मोड़ पर वाहनों का आवागमन प्रभावित हुआ। प्रदर्शनकारियों ने देवीसराय चौक पर जाम लगाकर आगजनी की और जेसीबी मशीन पर चढ़कर हंगामा किया। जहानाबाद-बिहार शरीफ-पटना-रांची रोड और नवादा-बिहार शरीफ मुख्य सड़क मार्ग को भी जाम किया गया।
हापुड़ में भारत बंद के दौरान विभिन्न संगठनों ने प्रदर्शन किया। बसपा, सपा, और आजाद समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर विरोध जताया और दिल्ली-लखनऊ हाईवे पर जाम लगाया। डीएम प्रेरणा शर्मा ने बताया कि वे लगातार राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों से बातचीत कर रहे हैं और शांतिपूर्वक ज्ञापन प्राप्त कर रहे हैं। बसपा जिलाध्यक्ष डॉ एके कर्दम ने भी संविधान में छेड़छाड़ की आलोचना की और इसे बंद करने की मांग की।
बता दें, उच्चतम न्यायालय में काफी लंबे समय से सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी, एसटी वर्ग को सब कैटेगरी में रिजर्वेशन दिए जाने की मांग का मामला लंबित था। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाते हुए अपने ही 2004 के पुराने फैसले को पलट दिया। इसके बाद न्यायालय ने पंजाब अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2006 और तमिलनाडु अरुंथथियार अधिनियम पर अपनी मुहर लगाकर कोटा के अंदर सब कैटेगरी को मंजूरी दे दी।
उल्लेखनीय है कि साल 2004 में उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार के मामले में यह फैसला दिया था कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए एससी, एसटी वर्ग में सब कैटेगरी नहीं बना सकती। क्योंकि ये अपने आप में जातीय समूह हैं। उस समय उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ जाने वाली पंजाब सरकार का तर्क था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय के 1992 के फैसले के तहत यह स्वीकार किया गया था, जिसने ओबीसी आरक्षण के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति दी थी। इसके बाद पंजाब सरकार ने ही पहली बार मांग की थी कि अनुसूचित जाति के भीतर भी सब कैटेगरी की अनुमति दी जानी चाहिए।
इसके बाद 2020 में उच्चतम न्यायालय ने यह तय किया कि इस मुद्दे पर न्यायालय की बड़ी बेंच द्वारा फिर से विचार किया जाना चाहिए। तब सीजेआई के नेतृत्व में सात जजों की संविधान पीठ बना दी गई। इस सात सदस्यी बेंच ने जनवरी 2024 में तीन दिनों तक दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद एक अगस्त 2024 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया।
संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला दिया कि राज्यों को हर आरक्षण के लिए कोटा के अंदर कोटा बनाने का अधिकार है। मतलब अब राज्य सरकारें एससी, एसीटी की श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती है। जिससे सबसे जरूरतमंद लोगों को इस आरक्षण में प्राथमिकता दी जा सके। इस फैसले के बाद राज्य विधानसभाएं इस विषय पर कानून बनाने के लिए सक्षम हो गईं। हालांकि, इस फैसले पर कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगरी लागू करने का आधार उचित होना चाहिए। इसके लिए कोर्ट ने बाकायदा संविधान के आर्टिकल-341 का आधार दिया था। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा था कि एससी कैटेगरी के भीतर किसी भी एक जाति को 100 प्रतिशत कोटा नहीं दिया जा सकता। हालांकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस फैसले के खिलाफ अपनी असहमति जताई थी।